Madhu varma

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लेखनी कविता -चील - बालस्वरूप राही

चील / बालस्वरूप राही


आसमान में उड़ती चील।
नज़र गड़ाए रहती लेकिन,
नन्हें-मुन्ने हाथों पर,
मार झपट्टा ले जाती हैं,
जो आज जाए उसे नज़र।
चाहे टॉफी चाकलेट हो,
चाहे चने बतासा, खील।
आसमान में उड़ती चील।

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